बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी, सरलता सहजता शालीनता और चिंतनशीलता के पर्याय श्री केशरीनाथ त्रिपाठी का कुछ समय पहले निधन हो गया। श्री त्रिपाठी आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी सहृदयता के किस्से हमेशा-हमेशा याद रहेंगे। श्री त्रिपाठी दलगत भावना से ऊपर उठकर सहयोग करने को हमेशा महत्व देते थे। यह बात 1992 की है। मुलायम सिंह राजनीति में अपना भविष्य तलाश रहे थे। जनता पार्टी से अपने को अलग किया था। सोशलिस्ट पार्टी के नाम से अपनी पार्टी का नाम रखना चाह रहे थे। कोई लीगल झमेला न फंसे, नाम के राजनीतिक मायने भी सही हों, यह चिंता उन्हें सता रही थी।
तभी उनको पंडित केशरीनाथ त्रिपाठी याद आए। पंडितजी से समय लेकर मुलायम सिंह यादव उनके आवास पहुंचे। अपनी चिंता जाहिर की। बताया कि हम सोशलिस्ट पार्टी के नाम से अपनी नई पार्टी शुरू करना चाहते हैं। पंडितजी ने कहा कि यह पार्टी पहले से रजिस्टर्ड है। मैं कानून का जानकार हूं। आप बिलावजह कानूनी पचड़े में फंस जाएंगे। आप लोग समाजवादी हैं तो समाजवादी पार्टी ही नाम क्यों नहीं रख लेते। और इस तरह दोनों कद्दावर नेताओं की बातचीत से 1992 में समाजवादी पार्टी का नाम अस्तित्व में आया।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के 1967-68 में अध्यक्ष रहे समाजवादी पार्टी के नेता विनोद चंद्र दुबे बताते हैं कि उस समय हम समाजवादी पार्टी में थे। पंडित केशरी नाथ त्रिपाठी उस समय विधानसभा अध्यक्ष थे। उस समय यूपी में भाजपा की सरकार थी और कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे। समाजवादी पार्टी के प्रथम स्थापना दिवस में केशरी नाथ त्रिपाठी बतौर विधानसभा अध्यक्ष आमंत्रित किए गए थे। पंडित जी ने न सिर्फ इस कार्यक्रम में भाग लिया बल्कि मुलायम सिंह के कहने पर कार्यक्रम को संबोधित भी किया था।
पंडित केशरीनाथ त्रिपाठी 1989 में शहर दक्षिणी से विधानसभा का चुनाव लड़े और जीते। इसके बाद 1991, 1993, 1997, 2002 में विधानसभा चुनाव जीते थे। 2007 में नंद गोपाल गुप्ता नंदी से शहर विधानसभा चुनाव हार गए। 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के परवेज टंकी से फिर चुनाव हार गए। इसके बाद फिर चुनाव नहीं लड़े। 1992 में जब समाजवादी पार्टी अस्तित्व में आई और मुलायम सिंह की जब तक चली इलाहाबाद में राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा आम थी कि मुलायम सिंह पंडितजी के प्रति सॉफ्ट कार्नर रखते हैं और केशरी नाथ त्रिपाठी जीत जाएं इसलिए कमजोर कैंडीडेट उतारते हैं।
पंडित केशरीनाथ त्रिपाठी 1977 में जनता पार्टी के टिकट से झूंसी विधानसभा से चुनाव लड़े थे और जीतकर उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री बने थे। उस समय चंद्रलोक सिनेमा बंद था और केशरीनाथ त्रिपाठी के आदेश पर ही खुलना था। कहा जाता है कि 1977 में राजा राम जायसवाल ने सिनेमा हॉल खोलने के लिए उस समय 7 लाख रुपए ऑफर किए थे। यह काफी बड़ा अमाउंट था पर पंडित जी ने मना कर दिया था। सिनेमा बंद रहा। बाद में जब खुला तो हिंदी साहित्य सम्मेलन की ओर गेट न खोलकर पीछे साइड में गेट खोला गया। हिंदी साहित्य सम्मेलन ने सिनेमा हॉल के खिलाफ आपत्ति की थी। इसके बाद उसे बंद किया गया था।
संगठन के प्रति पंडित केशरीनाथ त्रिपाठी काफी सक्रिय और समर्पित थे। संगठन का कोई भी कार्यकर्ता अगर उनके पास पहुंच जाता था तो उसका मुकदमा फ्री में लड़ते थे। उसकी यथासंभव आर्थिक मदद भी करते थे। कार्यकर्ताओं से सीधे सम्पर्क में रहते थे। उनसे सीधे फोन पर बात करते थे। अब यह चीज आज के दौर के नेताओं में नहीं है। यही कारण है कि पंडित केशरीनाथ त्रिपाठी के प्रति कार्यकर्ताओं में भी समर्पण का भाव रहता था। अगर किसी कार्यकर्ता को कोई जिम्मेदारी सौंप देते थे तो जी जान से जुट जाता था।
बहुत कम लोगों को जानकारी होगी कि पंडित केशरी नाथ त्रिपाठी देश ही नहीं विदेश में भी कविताएं पढ़ने जाते थे। अमेरिका, इंग्लैंड जैसे देशों में पंडित जी कविता पाठ करने के लिए आमंत्रित किए जाते थे। उनकी कई किताबें और कविता संग्रह भी छप चुके हैं। पंडित केशरीनाथ त्रिपाठी राजनीति की रपटीली राहों पर जितनी कुशलता से दौड़ लगाते थे, कानून के बड़े से बड़े दांव-पेच को चुटकियों में सुलझा देते थे, उतने ही माहिर वो कविता पाठ में भी थे। साहित्य जगत में पंडित जी काफी चर्चित और लोकप्रिय थे। अपने गृह शहर में अगर कोई मुशायरा या कवि सम्मेलन होता था और केशरीनाथ त्रिपाठी अगर शहर में मौजूद होते थे तो उसमें जरूर भाग लेते थे। कई बार कवि सम्मेलनों का संचालन भी करते थे। काफी बड़े नेता होने के बावजूद बहुत सहज और सरल स्वभाव था उनका। उभरते हुए कलाकारों कवियों लेखकों से उनका विशेष स्नेह था। उन्हें काफी समर्थन करते थे।