कृत्रिम मेधा अशक्त छात्रों की विशिष्ट शैक्षणिक जरूरतों को पूरा करने में सक्षम

राजकुमार जैन, इंदौर ए आई विशेषज्ञ और स्वतंत्र लेखक

AI शिक्षा क्षेत्र में एक ऐसी परिवर्तनकारी शक्ति के रूप में उभरा है, जो छात्रों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करने वाले व्यक्तिगत शिक्षण अनुभवों को सुगम, सुलभ और सुविधाजनक बना सकती है। व्यक्तिगत शिक्षण के क्षेत्र में एआई तकनीकों के एकीकरण के माध्यम से अनुकूली शिक्षण प्रणालियाँ, प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण और मशीन लर्निंग एल्गोरिदम, पारंपरिक शैक्षिक परिप्रेक्ष्यों को नए तरीके से पुन: परिभाषित कर सकते हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी आँकड़े और अन्य कई अध्ययनों और सर्वेक्षणों के अनुसार, दुनिया भर में 23.30% स्कूली बच्चे और किशोर मानसिक समस्याओं से जूझते हैं। जो उनकी सीखने की क्षमता को प्रभावित करते हैं। वास्तविक प्रतिशत संभवतः अधिक हो सकता है, क्योंकि कई छात्र अपनी अक्षमताओं के बारे में अपने संस्थानों को नहीं बताना चाहते हैं। उनकी ड्रॉपआउट दरें काफी अधिक हैं। इन छात्रों को शैक्षिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है जो अन्य छात्रों को नहीं करना पड़ती है। शारीरिक, मानसिक, भावनात्मक या व्यवहार संबंधी दिक्कतों के कारण इनकी सीखने की ज़रूरतें अलग होती हैं। पारंपरिक कक्षा बैठक व्यवस्था और शिक्षण पद्धतियाँ इनकी विविध ज़रूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होती हैं।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस अशक्त छात्रों की विशिष्ट शैक्षणिक जरूरतों की पूर्ति के लिए अनुकूलित सहायक तकनीकों और एआई से लैस उपकरणों की पेशकश करके शिक्षा जगत में अभूतपूर्व क्रांति ला रहा है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, सीखने में कठिनाई अनुभव करने वाले लाखों छात्रों के लिए आशा की किरण बन सामने आ रही है। यह तकनीकें उन्हें शैक्षिक चुनौतियों से निपटने के लिए विशिष्ट एवं अभिनव समाधान प्रस्तुत कर सफलता प्राप्त करने का एक अधिक व्यक्तिगत, प्रभावी और सुलभ विकल्प उनकी पहुँच में उपलब्ध करा रही हैं।

देशभर में लाखों छात्र डिस्लेक्सिया जैसी समस्या से जूझते हैं, जिससे वर्तनी को लिखने और पाठ को समझने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है। एआई-संचालित सहायक तकनीकें ऐसे छात्रों को चुनौतियों से उबरने में मदद कर रही हैं, जिससे वे अपनी पढ़ाई में उत्कृष्टता हासिल कर सकते हैं। तकनीकी कम्पनीयां, स्कूल और सरकारी निकाय इन तकनीकों को सभी छात्रों के लिए सुलभ बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं।

जरूरतमंद छात्रों के हाथों में नवीनतम तकनीक पहुंचाना शिक्षा विभाग की प्राथमिकता है। दृश्य, भाषण, भाषा और श्रवण संबंधी कई तरह की कठिनाइयों से पीड़ित अनगिनत छात्रों को कृत्रिम मेधा ऐसे काम करने में मदद करने का वादा करती है जो दूसरों के लिए आसान होते हैं। विद्यालयों में विशेष आवश्यकताओं वाले छात्रों के लिए “टेक्स्ट-टू-स्पीच” जैसे उपकरणों के उपयोग पर विचार किया जा रहा है। विभिन्न राज्यों के शिक्षा विभाग और निजी स्कूल प्रबंधन इस बात पर विचार कर रहे हैं कि एआई को कैसे और कहाँ शामिल किया जाए। यह प्रयास सामाजिक न्याय विभाग की नई नीतीयों के अनुरूप है, जो संस्थानों को दिव्यांग व्यक्तियों के लिए डिजिटल पहुँच सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित करता है।

सीखने की अक्षमता से पीड़ित छात्र कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग वाक्यों के सही क्रम की पहचान कर उन्हें सटीक रूपरेखा में संक्षेपित करने, विस्तृत अंशों का सारांश प्रस्तुत करने या कठिन उत्कृष्ठ साहित्यिक लेखों का सामान्य भाषा में अनुवाद करने के लिए कर सकते हैं। कंप्यूटर बुद्धिमता तकनीक में निरंतर प्रगति के चलते आजकल कंप्यूटर द्वारा उत्पन्न आवाज़ें जो दृष्टिबाधित और डिस्लेक्सिक छात्रों के लिए पाठ पढ़ सकती हैं, वे कम रोबोटिक और अधिक स्वाभाविक होती जा रही हैं।

पूर्वोत्तर राज्य के दूरस्थ ग्रामीण विद्यालय के एक छात्र, जिसे हाल ही में अपनी सीखने की अक्षमता के बारे में पता चला था, वो गृहकार्य में मदद के लिए एआई का उपयोग कर रहा है। अपना अनुभव साझा करते हुए वो बताता है कि गणित की कक्षा में, मेरे शिक्षक किसी समस्या को हल करने का तरीका समझाते हैं, लेकिन मुझे वो बिल्कुल भी समझ में नहीं आता। लेकिन जब मैं उस समस्या को एआई में डालता हूँ, तो वह मुझे उसे हल करने के कई अलग-अलग तरीके बताता है।

“सोक्रेटिक” एक प्रसिद्ध एआई टूल है जिससे उसने एक विस्तृत रिपोर्ट लिखने के लिए एक रूपरेखा बनाने में मदद करने के लिए कहा जो उस एआई प्रोग्राम ने चंद मिनटों में कर दिया। यह एक ऐसा काम था जिसको अपनी कठिनाईयों से संघर्ष करते हुए सम्पन्न करने में उसे घंटों लगते। उसका मानना है कि पूरी रिपोर्ट लिखने के लिए एआई का उपयोग करने से नैतिकता की सीमा पार हो जाती है, जो अपने आप के साथ एक धोखा होगा, क्योंकि यह मेरी पहले से ही कमजोर सीखने की क्षमता को पूरी

तरह से कुंद कर देगा।

एक जिले के हाई स्कूल में विशेष शिक्षा के हकदार छात्रों की मदद के लिए चैटबॉट शुरू किया गया। इस पहल के परिणाम देखकर वो शिक्षक, भावुक हो उठे जो छात्रों को उनकी पृथक जरूरतों को पूरा करने में मदद करने के लिए निरंतर संघर्ष करते थे । भीगी आँखों से वो कहते हैं कि अपनी आँखों से यह देखना एक अत्यंत सुखद अनुभव है कि कल तक, वो छात्र जो अपने कामों के लिए किसी के सहयोग पर निर्भर थे और अपने दम पर आगे बढ़ने में असमर्थ थे, आज वो ही छात्र किसी के मोहताज नहीं रहे। इन प्रौद्योगिकियों का विकास न केवल विशेष आवश्यकताओं वाले विद्यार्थियों के लिए शिक्षा को अधिक सुलभ बना रहा है, बल्कि उन्हें सीखने की प्रक्रिया में पूर्ण रूप से भाग लेने के लिए सशक्त भी बना रहा है। उत्साह से भरी आवाज में वो कहते हैं कि इस प्रभावी तकनीक को अपनाने के लिए अब हमें और इंतजार करने की जरूरत नहीं है।

दुनिया भर में विशेषज्ञों का मानना है कि यह प्रौद्योगिकी विशेष आवश्यकताओं वाले छात्रों के लिए समान अवसर उपलब्ध कराने में कारगर रूप से मददगार हो सकती है। इस तकनीक का उपयोग उन छात्रों की मदद करने के लिए भी किया जा रहा है जो अकादमिक रूप से संघर्ष करते हैं, भले ही वे विशेष शिक्षा सेवाओं के लिए चिन्हित न हों। निश्चित रूप से कुछ ऐसे लोग भी होंगे जो तकनीकों और उपकरणों का अनपेक्षित उपयोग निजी फायदे के लिए करेंगे। लेकिन ऐसा तो हमेशा से होता आया है और यह विशेष चिंता की बात भी नहीं है क्योंकि कृत्रिम बुद्धि आधारित तकनीक जरुरतमन्द लोगों को कुछ ऐसा करने में सक्षम बना रही है जो अपनी अक्षमता के साथ वो पहले नहीं कर पाते थे। अपने अलग क्षमतावान बच्चों के भविष्य के प्रति चिंतित अभिभावकों को उम्मीद है कि एआई की शक्ति का सही उपयोग कर, ऐसे इंतजाम करना संभव होगा, जहाँ हर छात्र को उसकी जरूरत के अनुसार समान अवसर मिल सकेंगे।

इस तकनीक को अपनाने में एक जोखिम यह भी है कि एआई पैटर्न की पहचान करने में उस्ताद है, एआई यह पता लगाने में सक्षम हो सकता है कि उसके उपयोगकर्ता किसी छात्र में कोई अक्षमता है। और यदि एआई द्वारा ऐसा कोई खुलासा किया जाता है जो छात्र या उनके परिवार द्वारा पहले नहीं किया गया था तो नैतिक दुविधाएँ पैदा हो सकती हैं।

एक और चुनौती डिजिटल डिवाइड है। सभी छात्रों के पास तकनीक तक समान पहुंच नहीं है, जिससे एआई से मिलने वाले लाभों में असमानता हो सकती है। यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए कि विशेष शिक्षा में एआई का उपयोग सभी छात्रों के लिए समावेशी और सुलभ हो।

हालांकि एआई द्वारा संभावित रूप से महत्वपूर्ण शिक्षण कौशल को प्रतिस्थापित करने के बारे में कुछ चिंताएं भी हैं, लेकिन शैक्षिक विशेषज्ञों का तर्क है कि यह छात्रों को उनकी जरूरतों के अनुसार खुद को ढालने के बारे में है। यह सभी छात्रों के लिए अधिक समावेशी, व्यक्तिगत और प्रभावी शैक्षिक अनुभव देने के बारे में हैं। अंत में, शिक्षा में मानवीय स्पर्श को बनाए रखने की चुनौती भी सामने है। तकनीक और मानवीय कौशल के मध्य संतुलन कायम रखने के लिए शिक्षकों को, अनिवार्य शिक्षण उद्देश्यों को बढ़ावा देते हुए और अकादमिक अखंडता को बनाए रखते हुए एआई की क्षमता का आवश्यकतानुसार दोहन करना होगा।