काट जादू टोने की

 

हम जब भी समस्याग्रस्त होते हैं, समस्या के कारण हमें बाहर ही दिखाई देते हैं। किंतु समस्या का मूल हमारे भीतर ही होता है, इस ओर हमारा ध्यान नहीं जा पाता है। समस्या तभी उत्पन्न होती है जब हम अपनी भूमिका का निर्वहन सही से नहीं कर पाते हैं। हम वो नहीं कर पाते हैं जो हमें करना चाहिए बल्कि वो कर डालते हैं जो हमें नहीं करना चाहिए।

पं. राकेश राज मिश्र  ‘जिज्ञासु’
कानपुर

 हम वैसे सोच ही नहीं पाते जैसे हमें सोचना चाहिए। व्यवहार हमारा यथोचित नहीं होता और दोष हम दूसरों को देते हैं। अहम की भूमिका ऐसे में अति महत्वपूर्ण होती है। ऐसी ही समस्या से ग्रस्त लोग मेरे पास आते रहते हैं जिनका समाधान गुरु कृपा से होता रहता है।

इस प्रकार की पहली समस्या मेरे समक्ष सन 2004 में आई थी। हमारे एक यजमान थे श्री सुग्रीव वर्मा जी ! वे बिजली विभाग में जूनियर इंजीनियर के पद पर कार्यरत थे। उनकी बेटी के विवाह के संबंध में 4 वर्ष पूर्व की गई मेरी भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हुई थी, और संयोग से उसकी बारात मेरी बताई हुई तारीख को ही आई थी। इस कारण वे मुझे बहुत मानने लगे थे। हर किसी से मेरी प्रशंसा करते थे।

उनकी प्रशंसा से ही प्रभावित होकर उनके एक वरिष्ठ अधिकारी सिन्हा जी एक दिन रविवार को अपनी पत्नी और ज्येष्ठ पुत्र आशीष के साथ मेरे यहां पधारे। आशीष बीटेक कर चुके थे और नौकरी पाने के लिए प्रयत्नशील थे, किंतु मन वांछित नौकरी नहीं मिल रही थी। बहू साढ़े चार माह के गर्भ से थी किंतु आशीष अभी संतान नहीं चाहते थे। उनका तर्क था कि पहले नौकरी फिर संतान। इस कारण वे गर्भपात कराने पर अड़े हुए थे।

गर्भ चूंकि साढ़े चार माह का हो चुका था इस कारण गर्भपात की सलाह देने का तो कोई औचित्य ही नहीं था। आशीष और बहू की कुंडली देखी तो दिखा कि ग्रहों की अनुकूलता में अभी छः महीने का विलंब है। मैंने उन्हें बताया कि बच्चा जो भी आ रहा है वह पिता के लिए भाग्यवर्धक होगा। उसके जन्म के साथ ही आपके भाग्य का उदय होना है। तभी आपको मनवांछित नौकरी मिल पाएगी। इसलिए गर्भपात की सोचना उचित नहीं होगा।

अभी चूंकि मन वांछित नौकरी का योग नहीं है इसलिए बेहतर होगा कि जो भी नौकरी आपको मिले, आप कर लें। खाली बैठने से कोई लाभ नहीं। मेरी सलाह सभी को पसंद आई। सिन्हा जी व उनकी पत्नी तो किसी भी प्रकार गर्भपात के पक्ष में थे ही नहीं। प्रथम पौत्र / पौत्री की प्रतीक्षा किसे नहीं होती। आशीष भी गर्भपात के लिए कह अवश्य रहे थे लेकिन चाहते वे भी नहीं थे। मेरी सलाह सुनकर जैसे वे सभी तनाव मुक्त हो गए और खुशी-खुशी मेरी बात स्वीकार कर ली।

अब श्रीमती सिन्हा ने बहू की कुंडली पुनः मेरे सामने रखते हुए पूछा कि पंडित जी जरा देखकर बताइए कि ये लड़की कुछ जादू टोना भी जानती है क्या ? मैंने कुंडली ध्यान से देखी तो देखते ही रह गया। ऐसी कुंडली कम ही आती है देखने में। कुंभ लग्न, तीसरे घर में उच्च का सूर्य स्वराशिस्थ मंगल के साथ, चौथे घर में स्वराशिस्थ शुक्र के साथ बुद्ध बैठा हुआ, दसवें घर में चंद्र और गुरु की युति, नवम भाव में उच्च का लग्नेश शनि बैठा हुआ।

ऐसा जातक भाग्य का धनी, बुद्धिमान, व्यवहार कुशल, और बहुगुण संपन्न होता है। मैंने उसकी शिक्षा के बारे में पूछा तो उत्तर आशीष ने दिया, एम ए इन साइकोलॉजी ! फिर मैंने श्रीमती सिन्हा की ओर देखते हुए पूछा और आप ? तो वो बोलीं कि इंटर में पढ़ रही थी तभी शादी हो गई, इंटर कंप्लीट नहीं हो पाया।

श्रीमती सिन्हा की समस्या का कारण स्पष्ट था। बहू जादूगरनी इसलिए नजर आ रही थी कि उसकी व्यवहार कुशलता ने सभी का दिल जीत लिया था। किंतु सासू मां के भीतर की स्त्री और उनका अहम उसमें अपनी पराजय देख रहा था। समस्या उनकी जड़बुद्धि की थी जिस कारण बहू की व्यवहार कुशलता, उसकी जादूगरी लग रही थी। मुझे लगा कि किसी प्रकार इनकी बुद्धि शुद्ध हो जाए तो यह वास्तविकता को स्वीकार कर लेंगी और इसी के साथ सारी समस्याओं का निराकरण हो जाएगा।

मैंने उन्हें बताया कि आपकी आशंका सही है। वास्तव में इस लड़की का व्यक्तित्व जादुई है। इसकी वाणी में और इसके व्यवहार में गजब का सम्मोहन है। इसके संपर्क में जो भी आए इसी का हो जाय। मेरी बात सुनते ही वो प्रसन्न हो गईं और विजयी मुद्रा में अपने पति और पुत्र की ओर देखने लगीं।

उनके भीतर का ज्वार फूट पड़ा। आशीष की ओर दिखाते हुए बोली कि पंडित जी ये लड़का जिसने मेरी कभी कोई बात नहीं टाली, मैं कहूं कि खड़े रहो तो खड़ा रहे मैं कहूं कि बैठ जाओ तो बैठ जाए। अब जब से वो आ गई है, मेरी सुनता ही नहीं है। उस जादूगरनी ने ऐसा चक्कर चलाया कि मेरा बेटा मेरा नहीं रहा, उसी का गुलाम हो गया है। मजाल है कि उसकी कोई बात ये टाल जाए।

और सुनो पंडित जी ! छोटा बेटा, वो भी अपनी भाभी के ही आगे पीछे डोलता रहता है, मेरी एक नहीं सुनता। हमारी बिटिया ! उसको भी वश में कर लिया है उस जादूगरनी ने ! हम कुछ कहें तो उल्टा हमें ही समझाती है कि भाभी सही कह रही हैं। यहां तक तो चल गया पंडित जी ! लेकिन ये सिन्हा जी ! इतना कहते ही वे रोने लगीं और बोलीं, ये भी उसी के कहने पर चलते हैं, उसी से सलाह मशविरा करते हैं। मैं तो जैसे कुछ हूं ही नहीं।

मैंने उन्हें सांत्वना देते हुए कहा कि कोई बात नहीं ! उसके जादू का काट भी है ! और आप ही कर सकती हैं। क्योंकि उसका जादू आप पर नहीं चल पाया। प्रयास तो उसने किया ही होगा। वो बोलीं कि हां पंडित जी ! बड़ा रचका के बोलती है मम्मी जी मम्मी जी ! मैंने कभी मुंह नहीं लगाया। मैंने कहा, आप यदि मन में ठान लें और मेरा बताया उपाय कर लें तो उसकी एक न चले ! सब आपकी ही सुनेंगे ! वह भी आपका कहना मानेगी। तो तुरंत बोलीं कि आप बताइए क्या करना होगा ?

मैंने कहा थोड़ी पूजा करनी होगी! आसान सी होगी, समय भी ज्यादा नहीं लगेगा, बस आधा पौन घंटा पर्याप्त है। वो बोलीं कि कर लूंगी पंडित जी! आप बताइए! मैंने कहा कि ठीक है, कल सुबह आएं कुछ फल और फूल लेकर! कुछ दक्षिणा भी रखवाऊंगा। वो बोलीं कि ठीक है पंडित जी! आती हूं कल सुबह!

अगली सुबह वो आईं, स्नान के बाद केश भी नहीं संवारे थे, वैसे ही खुले हुए थे। उनके लाए फल फूल और दक्षिणा मैंने भीतर भिजवा दिए मंदिर में चढ़ाने के लिए। उन्होंने बड़ी श्रद्धा के साथ मेरे पैर छुए फिर कुछ संकोच के साथ अपनी शंका व्यक्त की कि पंडित जी आप सही कह रहे हैं न, कि मेरी पूजा से उसके जादू का असर खत्म हो जाएगा? मैंने कहा बिल्कुल! यदि आप दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ सब कुछ वैसे ही कर सकें जैसा मैं बताऊंगा, तो न होने का तो कोई मतलब ही नहीं है ! आप करके देख लें।

वो बोलीं कि बिल्कुल वैसे ही करूंगी जैसे आप बताएंगे। मुझे अपनी लुटी हुई दुनिया वापस चाहिए ! मेरी गृहस्थी, मेरे बच्चे, मेरे पति, सभी कुछ तो छीन लिया है उस जादूगरनी ने। पंडित जी मेरे ही घर में मुझसे कोई सीधे मुंह बात नहीं करता ! उससे सभी बड़े प्यार से और अपनेपन से बात करते हैं। पंडित जी कलेजे में सांप लोटते हैं जब सिन्हा जी को उससे हंसते बतियाते देखती हूं। मुझे तो याद भी नहीं कि पिछली बार कब उन्होंने मुझसे वैसे प्यार से हंसकर बात की थी। इतना कहते-कहते उनका गला फिर रुंध गया।

मैंने ढाढस बंधाते हुए कहा कि आप चिंता ना करें ! जैसा मैं बताने जा रहा हूं बस वैसा करने के बारे में सोचें। फिर उनसे पूछा कि आपको संस्कृत पढ़ने में कोई दिक्कत तो नहीं होगी ! वो बोलीं कि हाई स्कूल में संस्कृत विषय लिया था। मैंने कहा फिर ठीक है।

उन्हें श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र तथा श्री गणपत्यथर्वशीर्षम की फोटो कॉपी देते हुए कहा कि भगवान गणेश जी की प्रतिमा आपके यहां होगी ही, हर घर में होती है। उसे सामने स्थापना देकर घी का दीपक और धूप जलाकर, एक तांबे के पात्र में जल रखकर, रोली अक्षत जल से पूजन करें। दूर्वा और मोदक का प्रसाद चढ़ावे ! दूर्वा गणेश जी को चढ़ाकर तांबे के पात्र में रखे जल में डाल दें। फिर श्री संकटनाशन गणेश स्तोत्र का एक पाठ उसके बाद श्री गणपत्यथर्वशीर्षम के कम से कम तीन पाठ नित्य करें। तीन से अधिक भी कर सकती हैं।

ध्यान रखें आपको जमीन पर कंबल बिछाकर, मुख पूर्व दिशा की ओर रहे, ऐसे बैठना है। पूजा संपन्न होने के बाद आसन के नीचे एक बूंद जल की डालकर उसे मध्यमा उंगली से मस्तक पर लगाना है, फिर उठना है। और उठकर पैर जमीन पर नहीं, सीधे स्लीपर पर रखना है। स्लीपर और आसन के बीच पायदान रख लीजिएगा। प्रयास करना है कि पूजा संपन्न होने के आधे घंटे तक पैर अथवा शरीर पृथ्वी से स्पर्श न करे।