कर्मयोग: सफलता नहीं, समर्पण की साधना

वैष्णवी सिंह वाराणसी

आज की दुनिया में सफलता को मापने के पैमाने बदल गए हैं। परीक्षा के अंक, कारोबार का मुनाफ़ा, पदकों की गिनती या सोशल मीडिया पर लाइक्स—हमारे लिए यही उपलब्धि की परिभाषा बन चुकी है। नतीजा ? हम लक्ष्य तक पहुँचने से पहले ही तनाव, तुलना और असंतोष में डूब जाते हैं। यही वह समय है जब कर्मयोग की शिक्षा पहले से भी अधिक प्रासंगिक हो जाती है। भगवद्गीता में श्रीकृष्ण का यह संदेश —”कर्मण्येवाधिकारस्ते, मा फलेषु कदाचन”—सिर्फ़ आध्यात्मिक उपदेश नहीं, बल्कि जीवन जीने की व्यावहारिक विधि है।

कर्मयोग कहता है: “कर्तव्य करो, लेकिन फल की चिंता मत करो।” जरा सोचिए, किसान बारिश या बाज़ार भाव की चिंता किए बिना बीज बोता है—क्योंकि वही उसका धर्म है। सैनिक पदक के लिए नहीं, बल्कि देश के लिए लड़ता है। खिलाड़ी अगर हर गेंद पर केवल स्कोर सोचे, तो खेल का आनंद खो देगा। कर्मयोग यही सिखाता है—खेल खेलो, जीत अपने आप आएगी।

कर्मयोग का अर्थ है—अपने दैनिक कार्य पूरे समर्पण और निष्ठा के साथ करना, लेकिन परिणाम से स्वयं को जोड़ना नहीं। यह मार्ग हमें सिखाता है कि सफलता का अर्थ पुरस्कार नहीं, बल्कि ईमानदारी से निभाया गया कर्तव्य है। जब हम स्वार्थ और अहंकार से मुक्त होकर काम करते हैं, तो मन शुद्ध होता है, धैर्य बढ़ता है और हम अपने भीतर के उद्देश्य के करीब पहुँचते हैं।

कर्मयोग से बदलेगा जीवन

– तनाव से मुक्ति: जब हम नतीजे की चिंता छोड़ देते हैं, तो काम बोझ नहीं, आनंद बन जाता है।

– गुणवत्ता में वृद्धि: नतीजे का मोह छोड़ देने से हम हर कार्य में अपना सर्वश्रेष्ठ देते हैं।

– आत्मिक संतोष: कर्मयोग आत्मा को यह शांति देता है कि हमनें जो किया, पूरी निष्ठा से किया।

– अहंकार से मुक्ति: फल पर अधिकार छोड़ने से ‘मैं’ की दीवार धीरे-धीरे टूटने लगती है।

कर्मयोग के मूल सिद्धांत

– सही दृष्टिकोण: हर कार्य को ईमानदारी और सकारात्मक भाव से करें।

– कर्म पर ध्यान, लाभ पर नहीं: नतीजे के बजाय प्रक्रिया में रम जाएं।

– कर्तव्य का पालन: जन्म से मिले और जीवन में अपनाए गए दायित्व पूरे करें।

– स्व-देखभाल: स्वयं को सक्षम बनाना भी एक ज़िम्मेदारी है।

– श्रेष्ठ प्रयास: चाहे कोई देख रहा हो या नहीं, हर काम पूरी लगन से करें।

– परिणाम की स्वीकृति: सफलता और असफलता दोनों को सहजता से अपनाएं।

– हर कार्य का सम्मान: कोई भी काम छोटा नहीं होता।

अगर हर नागरिक, हर नेता और हर संस्था नतीजों की होड़ छोड़कर केवल अपने कर्तव्य पर टिक जाए, तो लालच अपना चेहरा छिपा लेगा, भ्रष्टाचार को सांस लेने की जगह नहीं मिलेगी और गुटबाज़ी इतिहास के पन्नों में धूल खाती मिलेगी। कर्मयोग केवल व्यक्ति को संतुलन, ईमानदारी और धैर्य नहीं देता, बल्कि पूरे समाज की रगों में भरोसा, सच्चाई और शांति का संचार करता है। यह वह दृष्टि है जो हमें न केवल व्यक्तिगत सफलता की ओर, बल्कि सामूहिक उत्थान की ओर भी ले जाती है, जहां हर कर्म स्वार्थ से नहीं, बल्कि एक बड़े उद्देश्य से प्रेरित होता है।

New Project (61)

Author