प्रेम का मौसम…. हाँ होता है ना प्रेम का मौसम। फ़रवरी आते ही लगता है चारों तरफ़ प्रेम का मौसम छा गया हो। एक तरफ़ प्रकृति करवट लेती है तो दूसरी ओर वैलेंटाइन्स डे की धूम मच जाती है। शायद इसे ही प्रेम का सीज़नल बुखार कहते हैं। चारों ओर उपहारों की ऐसी होड़ लग जाती है जैसे इस हफ़्ते बाद आपका जीवन ही ख़त्म हो जाएगा।
“क्या प्रेम के लिए किसी मौसम की ज़रूरत है” लड़के ने लड़की पर नज़रें गड़ाते हुए पूछा !
“नहीं मुझे तो कभी नहीं लगता इंफकत प्रेम की ज़रूरत ही क्या है” — लड़की ने हँसते हुए बोला।
लड़का कुछ असहज महसूस करने लगा — “हाँ ! माना जा सकता है पर किसी को पसंद करना और इज़हार कर देना ग़लत तो नहीं। बादल भी झुकते हैं ना धरती की तरफ़ और फिर प्रेम का संबंध तो रूह से जुड़ा होता है, जिसे महसूस करने के लिए मौसम की ज़रूरत नहीं और जिसे महसूस करने के लिए मौसम की ज़रूरत पड़े वो प्रेम कहाँ ?
लड़की चुप सुने जा रही थी और बीच-बीच में फ़ोन पे आने वाले नोटिफिकेशन भी देखती जा रही थी। मौसम थोड़ा थोड़ा गर्म होने लगा था हवाएँ थोड़ा गर्म होकर अब सुहावनी लगने लगीं थीं उस पर थोड़ी-थोड़ी बारिश और मिट्टी की सौंधी-सौंधी ख़ुशबू मौसम में खुमार पैदा कर रही थी।
लड़की अचानक साड़ी सही करते हुए बोली “ये बताओ अचानक आज मुझे कॉफ़ी पीने क्यों बुलाया, वैसे भी ऑफ़िस के काम बढ़ते जा रहे हैं उस पर तुम्हारी ये ज़िद”
लड़का लड़की को टकटकी लगाए देखता जा रहा था – बसंती पीले रंग की साड़ी और लाल ब्लाउज़ में उसका वो उजला रंग और भी निखर रहा था जैसे उगते सूरज की लालिमा चेहरे पर भी बिखर आयी हो, काली-काली आँखों के बीच पीली बिंदी घाटी में से उगते सूरज सी लग रही थी। लड़का सोचता जा रहा था पता नहीं इस आकर्षण से कोई कैसे बच सकता है।
इतने में लड़की झुँझलाते हुए बोली “भाई ! कुछ बोलोगे भी या यूँ ही पूरा दिन बर्बाद करना है !
” लड़का एकदम से वास्तविकता में लौटा “अरे ! बस यूँ ही तुम्हारे साथ कॉफ़ी पीने का मन हुआ” — लड़की हंसते हुए बोली “अच्छा तो जनाब कॉफी पीने बॉम्बे से दिल्ली आ पहुँचे, अब झूठ बोलकर मन रखने की ज़रूरत नहीं, सही बताओ कैसे आना हुआ।
“वो…..”
लड़का कुछ कहते कहते रुक गया
“वो क्या”
“वो तुम्हें कुछ देना था” लड़की थोड़ी असहज हुई ! — “क्या“ “टेडी”
लड़की की आँख की आश्चर्य से फैल गई — “ये मेरे लिए, इसे देने तुम इतनी दूर चले आ रहे हो। दिमाग़ तो सही है तुम्हारा ! मैं कोई छोटी बच्ची हूँ, जो खेलूंगी इससे और तुम्हें पता है मुझे ये सब पसंद नहीं”
। लड़का बस आँखों में प्रेम भरकर देखता जा रहा था — मेरे लिए तो तुम बच्ची ही हो जिसे मैं हर दुख तक़लीफ़ से बचाना चाहता हूँ जिसे मैं दुनिया से दूर अपने सीने में छुपाना चाहता हूँ। उस दुनिया में ले जाना चाहता हूँ, जहाँ तुम अपने मुताबिक़ जी सको। एक बच्ची की तरह खेलो, हँसो, संजो, संवरो। लड़की की आँख विस्मय से फैलती जा रही थी और दिल में कहीं न कहीं एक धुंधली याद ताज़ा हो रही थी, जो उसके पापा की थी। हर लड़की का पहला प्यार उसके पापा ही तो होते हैं और अगर कोई लड़का उससे वो प्यार करे जो उसके पापा की याद दिलाये, तो शायद वही रिश्ता उसके लिए सबसे ख़ास होता है।
लड़की बिना कुछ कहे उठी उसकी आँखों में नमी थी और दिल में पापा की याद। लेकिन उस टेडी को वहाँ छोड़ना लड़के की भावनाओं का अपमान करना होता, ये सोच वो उसे साथ लेकर बिना कुछ कहे तेज कदमों से बाहर निकल गयी। लड़का अभी भी बिना किसी उम्मीद के लड़की को देखे जा रहा था। क्योंकि, उम्मीद के साथ तो व्यापार किया जाता है प्यार नहीं। सच्चा प्यार तो वही है जिसमें ना उम्मीद होती है और न बदले की भावना।