नेतरहाट : छोटा नागपुर की रानी

नेतरहाट भारत के झारखंड राज्य के लातेहार जिले में स्थित एक हिल स्टेशन है। यह हिल स्टेशन पहाड़ियों, जंगल और झरनों की प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है।
झारखंड में कुछ ऐसे अविश्वसनीय हिल स्टेशन हैं, जिन्हें अभी भी खोजा जाना बाकी है। यह राज्य हरियाली और आदिवासी संस्कृति से भरपूर है। झारखंड के हिल स्टेशन प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विरासत का एक आदर्श मिश्रण पेश करते हैं चाहे आप एक शांतिपूर्ण विश्राम की तलाश में हो या एक साहसिक छुट्टी की, इन हिल स्टेशनों में हर किसी के लिए कुछ न कुछ खास है। इन्हीं में से एक हिल स्टेशन है “नेतरहाट” जहाँ पर्यटकों के लिए कई दर्शनीय स्थल हैं।
सुरम्य पूर्वी घाटों के बीच बसा “नेतरहाट” हिल स्टेशन शहरी जीवन की हलचल से दूर एक शांत वातावरण प्रदान करता है।
“नेतरहाट” झारखंड में एक लोकप्रिय इको-टूरिज़्म स्थल है, जिसे “छोटा नागपुर की रानी” के साथ-साथ “झारखंड के दार्जीलिंग” के रूप में भी जाना जाता है। यह अपने अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य, शांत वातावरण और आकर्षक दृश्यों के लिये प्रसिद्ध है।
झारखंड की धरा पर प्रकृति की सबसे खूबसूरत भेंट “नेतरहाट” है। इस हिल स्टेशन की विशेषता यह है कि यहाँ की मनमोहक वादियों से सूर्योदय और सूर्यास्त के अद्भुत, अद्वितीय एवं अनुपम दृश्य दिखाई देते हैं।
नेतरहाट के प्रमुख एवं प्रसिद्ध पर्यटन स्थल –
मैगनोलिया सनसेट प्वाइंट- अपने प्रियजनों के साथ घूमने के लिए मैगनोलिया प्वॉइंट सबसे शानदार और खूबसूरत स्थानों में से एक है। शाम को लगभग 6 बजे, पर्यटक अपने दिन की घुमक्कड़ी को लपेटते हुये, जब सूर्य को आकाश से विदा होते हुये देखते हैं, तब सूर्यास्त का वह दृश्य आपकी आँखों और यादों में सदा सदा के लिये अमिट हो जाता है।
कहा जाता है कि एक स्थानीय युवा को ब्रिटिश लड़की मैगनोलिया से प्यार हो गया था और वो दोनों इसी स्थान पर मिला करते थे। ब्रिटिश अधिकारी ने उस युवक को मरवा दिया। यह घटना पता चलने पर मैगनोलिया ने भी यहीं से घाटी में कूदकर अपनी जान दे दी थी। इसीलिए इस जगह का नाम मैगनोलिया प्वॉइंट रखा गया है।
ऊपरी घाघरी जलप्रपात – यह जलप्रपात नेतरहाट से 4 किमी दूर स्थित है। विशाल और बादलों से घिरा आकाश इसको काफी रोमांचक बना देता है। अपने सामने गिरती पानी की तेज धारा का अनुभव करने के लिए देश भर से लोग यहाँ पहुंचते हैं। मानसून के मौसम में इस जगह की ख़ूबसूरती अपने चरम पर होती है।
लोअर घाघरी जलप्रपात – निचले घाघरी झरने नेतरहाट के प्रमुख आकर्षणों में से एक हैं जहां की यात्रा आपको अवश्य करनी चाहिये। निचले घाघरी झरने घने जंगल में स्थित एक ऐसी जगह पर हैं जहाँ पर लगभग 32 फिट ऊपर से गिरता हुआ झरना है। ये झरना जंगल के बीच से अपना रास्ता बनाता हुआ एक छोटी नदी के समान नजर आता है। लोअर घाघरी झरने नेतरहाट से 10 किमी की दूरी पर स्थित है।
कोयल व्यू प्वॉइंट – कोयल व्यू प्वॉइंट, नेतरहाट से 3 किमी की दूरी पर स्थित है। इस स्थान से आपको कोयल नदी के तट स्पष्ट रूप से और मंत्रमुग्ध कर देने वाले दृश्य दिखाई देते हैं।

नेतरहाट सनराइज प्वॉइंट – अगर आप टाइम लैप्स को अपने कैमरे में क़ैद करना चाहते हैं, तो नेतरहाट सनराइज़ प्वॉइंट वह जगह है जहाँ आप ऐसा कर सकते हैं। क्षितिज पर सूर्योदय के अद्भुत दृश्यों को देखने के लिये यहाँ जल्दी पहुँचना होगा।
नेतरहाट विद्यालय – सुप्रसिद्ध नेतरहाट विद्यालय की स्थापना नवंबर माह वर्ष 1954 में हुई थी। सरकार द्वारा स्थापित और गुरुकुल के प्रारूप पर बने इस स्कूल में प्रतियोगिता परीक्षा के आधार पर प्रवेश दिया जाता है। यहाँ के छात्र अपने शिक्षकों को गुरुजी और माताजी कहकर सम्बोधित करते हैं। इस विद्यालय ने देश को अनेक IAS और IPS दिये हैं, जिन्होंने हर एक क्षेत्र में इस विद्यालय का नाम ऊँचा किया है।
पाइन फ़ॉरेस्ट – नेतरहाट में मौजूद चीड़ के जंगल एक ऐसी जगह है, जो एडवेंचर प्रेमियों के बीच काफी लोकप्रिय है। जंगलों के बीच ट्रैकिंग करना काफी रोमांचक अनुभव माना जाता है। इस जगह पर मौसम अधिकतर ठंडा रहता है, जो शहर की तुलना में काफी सुखद अहसास कराता है। कहा जाता है कि यह जंगल प्रकृति प्रेमियों के लिए किसी हसीन जन्नत से कम नहीं है।
सदनी जलप्रपात – सदनी जलप्रपात नेतरहाट से लगभग 35 किमी दूर स्थित है। यह झरना आकर्षक और एक साँप के आकार में है जो कि बेहद खूबसूरत दिखाई देता है।
नाशपाती बागान – नाशपाती के बाग और चीड़ के जंगल स्थानीय वन विभाग की पहल है, और उन्होंने इस स्थान पर बहुत सारे पेड़ लगाये हैं।
व्यू टॉवर – व्यू टॉवर फ़ॉरेस्ट बंगला के पास स्थित है जहां से नेतरहाट की प्राकृतिक सुंदरता को देखा जा सकता है।
लोध जलप्रपात – लोध जलप्रपात झारखंड का सबसे ऊँचा जलप्रपात है जो कि 468 फुट की ऊँचाई पर स्थित है। यह प्रकृति के मध्य एक छुपा हुआ रत्न है। यह जलप्रपात नेतरहाट से 60 किमी दूर प्राकृतिक सौन्दर्य और मनोरम दृश्य के लिए जाना जाता है। यह जलप्रपात हरे भरे जंगलों और पहाड़ियों से घिरा हुआ है। जो कि इसे ट्रैकिंग और पिकनिक के लिए एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल बनाता है। यह जलप्रपात मानसून के मौसम में अपने पूरे उफान पर होता है, लेकिन अन्य मौसमों में भी इसकी ख़ूबसूरती बरकरार रहती है।
बेतला राष्ट्रीय उद्यान – वन्य जीव प्रेमियों के लिये बेतला राष्ट्रीय उद्यान एक आदर्श स्थान है, ख़ासकर बच्चों के साथ। यह राष्ट्रीय उद्यान आकर्षक पलामू जिले के पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित है। बेतला राष्ट्रीय उद्यान, वनस्पतियों और जीवों की विविध प्रजातियों का घर है, जिन्हें आप एक साहसिक सफारी के साथ यादगार बना सकते हैं।
पलामू किला – पलामू किले के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। केवल इतना पता है कि रक्सेल वंश के राजाओं ने इसे बनवाया था। जिनका शासन इन क्षेत्रों पर था, जो अब उत्तरी छत्तीसगढ़ और उत्तर पश्चिमी झारखंड के अंतर्गत आते हैं।
नया पलामू किला सन् 1650 के दशक में चेरो वंश के आदिवासियों द्वारा बनवाया गया था। बाद में मुग़ल सेनापतियों ने क़िले पर क़ब्ज़ा कर लिया और चेरो लोग जंगलों में चले गये। वर्तमान में यह क़िला खंडहर हो चुका है।
बाबा टॉंगीनाथ धाम – टॉंगीनाथ धाम झारखंड के गुमला में स्थित है, जो कि नेतरहाट से 60 किमी की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि यह अति प्राचीन स्थल है। आश्चर्य की बात यह है कि यहाँ खुले आसमान के नीचे ज़मीन में गड़े लोहे के त्रिशूल और फरसे पर आज तक जंग नहीं लगी है। इसे भगवान शिव का चमत्कार कहा जाता है।

भगवान परशुराम के फरसे का उल्लेख रामायण, महाभारत और भागवत पुराण आदि प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। राजा जनक की पुत्री सीता जी के स्वयंवर के समय जब भगवान राम ने महादेव के धनुष को प्रत्यंचा चढ़ाकर तोड़ दिया था, तब भगवान शिव के परम भक्त भगवान परशुराम क्रोधित होकर भगवान राम को दण्ड देने के लिये स्वयंवर में पहुँचते हैं। लेकिन जैसे ही परशुराम जी को यह पता चलता है कि उनके समक्ष खड़े श्री राम जी साक्षात विष्णु जी के अवतार हैं। जिसके बाद वह पश्चाताप करने के लिये अपने विशाल फरसे को ज़मीन में गाड़ कर भगवान भोलेनाथ की घोर तपस्या में लीन हो जाते हैं।
मान्यताओं के अनुसार भगवान परशुराम का फरसा आज भी यहाँ मौजूद है। जिस स्थान पर फरसा ज़मीन पर गड़ा हुआ है, उसे ही “टॉंगीनाथ” धाम कहते हैं।
टॉंगीनाथ धाम में पत्थरों से निर्मित एक प्राचीन मंदिर है। इसके साथ ही खुले आसमान के नीचे भगवान शंकर जी के 108 शिवलिंग हैं, और साथ-साथ अन्य देवी देवताओं की प्राचीन पत्थरों से निर्मित मूर्तियां भी हैं।
आस-पास
सामत – सरना (डीपाडीह) – सामत- सरना, डीपाडीह का प्रमुख पुरातात्विक स्थल है। यह छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के मुख्यालय अम्बिकापुर से 75 किमी दूर अम्बिकापुर-कुसमी मार्ग पर और नेतरहाट से लगभग 95 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ पर शैव और शाक्य सम्प्रदायों सें सम्बन्धित हिन्दू मन्दिरों के अवशेष मिलते हैं। जिनमें शिव मन्दिर, महिषासुर मर्दिनी, लक्ष्मी विष्णु, उमा महेश्वर, कुबेर और कार्तिकेय की मूर्तियां मिलती हैं।
चारों ओर पहाड़ियों और वृक्षों के जंगलों से घिरे इस क्षेत्र का प्राकृतिक सौन्दर्य पर्यटकों को आकर्षित करता है वर्ष 1988 में यहाँ खुदाई में 7वीं – 10वीं सदी तक की अनेक प्राचीन और दुर्लभ कलाकृतियाँ प्राप्त हुईं, जिनके कारण यह क्षेत्र चर्चा में आया।
खुदाई में मिले उराँव टीला स्थित शिव मन्दिर में लोकजीवन तथा जीवजंतुओं को शिल्पियों ने उकेरने में अद्भुत भाव प्रवीणता का परिचय दिया है। इसमें नृत्य करते मयूर, उड़ते हुए हंस तथा नायिकाओं के चित्रण से इस तथ्य की पुष्टि होती है। एक नारी प्रतिमा में दोनों कानों में अलग-अलग आभूषण धारण करते दिखाया गया है, जो आज भी सरगुजा क्षेत्र की वृद्ध महिलायें पहनती हैं।
यहाँ पर तीन नदियों कन्हर, सूर्या और गलफुल्ला का संगम है।
आठवीं शताब्दी के शिव मन्दिर के गर्भगृह में चौकोर पीठ पर 7 फुट ऊँचा शिवलिंग स्थापित है। एक बड़े शिवलिंग में 108 लघु शिवलिंग बने हुए हैं। डीपाडीह की शिल्पकला में देवी प्रतिमा को भी प्रमुखता से रूपांकित किया गया है। यहाँ की शिल्पकला में अप्सराओं, सुरसुंदरियों और नायिकाओं को अनेक भाव-भंगिमाओं में प्रदर्शित किया है, कहीं दर्पण देखती, श्रृंगार करती, वेणी गूँथती, नूपुर पहनती, नृत्य करती, प्रिय की प्रतीक्षा करती तथा मनुहार की इच्छुक नायिकाओं का भाव विभोर अंकन है।
मूर्तियों में कहीं नायक द्वारा अपनी प्रेयसी के पैर में चुभे हुए कांटे को बाण के फलक से निकालते हुए उकेरा गया है। डीपाडीह की मूर्तिकला में आध्यात्मिक तत्त्व तथा लौकिक परिवेश को संतुलित ढंग से प्रदर्शित करने के प्रयास में शिल्पियों का कौशल स्तुत्य एवं प्रशंसनीय है ।
डीपाडीह में पुरानी बावड़ियाँ भी हैं, एक छोटा सा रानी पोखर है। उसी तरह सामत-सरना मन्दिर के पिछवाड़े में एक बावड़ी है।
नेतरहाट जाने का सही समय – नेतरहाट वर्ष भर में कभी भी जा सकते हैं। यहाँ गर्मियों के मौसम में भी शाम को हल्की ठंड होती है। इसलिए हल्के गर्म कपड़े अवश्य साथ रखें। सर्दियों के मौसम में यहाँ बहुत ठंड पड़ती है इसलिए पर्याप्त संख्या में ऊनी वस्त्र पहनें और अपने साथ ले जाएँ।
नेतरहाट के लिये कितने दिन चाहिये – नेतरहाट घूमने के लिए कम से कम दो -तीन दिनों का समय चाहिए।
नेतरहाट कैसे पहुँचे –
वायुमार्ग द्वारा – नेतरहाट से निकटतम हवाई अड्डा रांची 154 किमी की दूरी पर स्थित है, जो भारतीय एयरलाइंस की उड़ानों द्वारा मुम्बई, पटना, कोलकाता और नई दिल्ली से जुड़ा हुआ है। यहाँ से कैब द्वारा नेतरहाट पहुँच सकते हैं।
रेलमार्ग द्वारा – नेतरहाट से निकटतम रेलवे स्टेशन रांची 145 किमी की दूरी और डाल्टनगंज से लगभग 90 किमी की दूरी पर स्थित है। यहाँ पहुँचने के बाद टैक्सी द्वारा नेतरहाट जाया जा सकता है।
सड़क मार्ग द्वारा – रांची से नेतरहाट तक दैनिक बस सुविधा उपलब्ध है। यहाँ से आप निजी वाहन या कैब करके भी नेतरहाट पहुँच सकते हैं।
